(एक) खजूर के वृक्षों की छोटी-सी छाया उस कड़ाके की धूप में मानो सिकुड़ कर अपने-आपमें, या पेड़ के पैरों तले, छिपी जा रही है। अपनी उत्तप्त साँस से छटपटाते हुए वातावरण से दो-चार केना के फूलों की आभा एक तरलता, एक चिकनेपन का भ्रम उत्पन्न कर रही है, यद्यपि अज्ञेय
जैसे ही उसने पिंजरा खोला, बाघ उस आदमी पर झपट पड़ा। भूखे बाघ ने ब्राह्मण को खाने से पहले तीन सवाल पूछने का मौका दिया। ब्राह्मण ने एक सवाल पीपल के पेड़ से, एक भैंस से और आखिरी सवाल सड़क से पूछा। सभी उत्तरों से निराश होकर वह वापस जा रहा था। तभी उसकी मुलाकात एक सियार से हुई। जानिए कैसे चतुर सियार ने ब्राह्मण को भूखे बाघ से बचाने के लिए बाघ के सामने गूंगे और मूर्खों वाला काम किया।
Picture: Courtesy Amazon That is a critically acclaimed satirical Hindi novel penned by Shrilal Shukla and published in 1968. This Hindi fiction book provides a scathing critique of your socio-political landscape of rural India. Established within the fictional city of Shivpalganj, the narrative unfolds through the eyes on the protagonist, Ranganath, a young gentleman who returns to his ancestral village to Recuperate from an sickness.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश
संत ने बिच्छू को फिर अपने हाथ से निकाला। बिच्छू ने संत को फिर डंक मारा।
एक झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए थे और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों प्रेमचंद
रितेश उदास हो गया रो-रोकर आंखें लाल हो गई। रितेश अब पार्क में बैठ कर रोने लगा। कुछ देर बाद वह देखता है कि उसके तीनों खरगोश घास खा रहे थे , और खेल रहे थे। रितेश को खुशी हुई और वह समझ गया कि इन को भूख लगी थी इसलिए यह पार्क में आए हैं। मुझे भूख लगती है तो मैं मां से खाना मांग लेता हूं। पर इनकी तो मैं भी नहीं है। उसे दुख भी हुआ और खरगोश को मिलने की खुशी हुई।
उसी हिंदी के सामने 'उसने कहा था' की read more वो हिंदी जो आज भी इसलिए ताज़ा और समकालीन लगती है क्योंकि वो एक ओर तो जीवित-व्यावहारिक भाषा को रचना का आधार बनाती है और दूसरी ओर वो इस भाषा की व्यंजनाओं को विरल विलक्षण आँख से पकड़ती है.
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उदाहरण के लिए इस कहानी का पहला पैरा ही देखिए :
अगले दिन दूसरे भाई ने सावित्री को अपने सफ़ेद मैले कपडे धोने के लिए भेजा और जानबूझकर उसे साबुन नहीं दिया। तालाब पर पहुंच कर सावित्री रोने लगी। तभी वहां से एक सारस निकला और रोती हुई सावित्री को देख कर उसकी मदद के लिए रुक गया। सरस कपड़ों पर लोटने लगा जिस से कपडे दूध जैसे सफ़ेद हो गए। सावित्री ख़ुशी ख़ुशी कपडे ले कर घर चली गई।
जंगल में सुंदर-सुंदर हिरण रहा करते थे। उसमें एक सुरीली नाम की हिरनी थी। उसकी बेटी मृगनैनी अभी पांच महीने की थी। मृगनैनी अपनी मां के साथ जंगल में घूमा करती थी।
वह कौन-सा मनुष्य है जिसने महा-प्रतापी राजा भोज महाराज का नाम न सुना हो! उसकी महिमा और कीर्ति तो सारे जगत् में व्याप रही है, और बड़े-बड़े महिपाल उसका नाम सुनते ही काँप उठते थे और बड़े-बड़े भूपति उसके पाँव पर अपना सिर नवाते। सेना उसकी समुद्र की तरंगों राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद
चुनमुन कहती अभी थोड़ी और बड़ी हो जाओ तब सिखाएंगे। बच्चे दिनभर ची ची ची ची करके चुनमुन को परेशान करते।